new

Friday, 23 December 2016

पीएम नरेन्द्र मोदी को क्यों गुस्सा आया?

नोटबंदी,कालेधन,आयकरवंचकों के खिलाफ अभियान क्यों छेडऩा पड़ा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लगभग ढाई वर्ष का कार्यकाल समाप्त होने जा रहा है। अपने कार्यकाल में कोई उल्लेखनीय कार्य न हो पाने के कारण पीएम अवश्य परेशान रहें होगे। इसका अनुमान सहजता से लगाया जा सकता है। सत्ता संभालने के बाद से 18 घंटे प्रतिदिन कार्य करने वाला ईमानदार और राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत, लाल बहादुर शास्त्री से प्रेरित नरेन्द्र मोदी ने खुद को ईमानदार होने के साथ देश के ईमानदार लोगों के साथ इंसाफ करने की मन ठान रखी थी। वह इस बात को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि देश का ईमानदार आदमी ही सब जगह पिसता है। यह ईमानदार इंसान इतना सच्चा और सीधा होता है कि वह आज के सिस्टम में फिट नहीं है। इन्हीं ईमानदार लोगों के लिए कुछ करना चाहिए क्योंकि देश में इन ईमानदार लोगों की संख्या सबसे अधिक हैं।आज हमारे देश का युवा जिस देश में पैदा हुआ है, वहां रहना क्यों नहीं चाहता? क्योंकि यहां ईमानदारों की कोई कद्र नहीं है। आज हमारे देश का चरित्र इस कहावत से बहुत मेल खाती है कि पढ़ फारसी बेचें तेल, यह देखों किस्मत का खेल।  पीएम मोदी ने ईमानदार लोगों के लिए ही कालेधन वालों और करों के साथ तिकड़मी खेल खेलने वाले करवंचकों को लगातार दो साल तक स्वैच्छिक घोषणा कर लाइन पर आने के लिए मनाया। लेकिन हर बार की तरह इस बार इन लोगों की कान में जूं इसलिए नहीं रेंगी क्योंकि उन्हें यह अच्छी तरह मालूम है  कि रिश्वत लेते पकड़े गए और रिश्वत देकर छूट आएंगे जब तक चल रहा है तब तक उनकी सेहत को कोई खतरा नहीं आने वाला है। देश को सुधारने की शपथ लेने वाले मोदी को यह बात नागवार गुजरी होगी और उन्होंने इसके लिए अवश्य ही ऐसा करना चाहा जो सामने है। इसके लिए हमने कुछ अन्य वेबसाइटों से आंकड़ों का सहारा लिया है, जिसके प्रति हम उनका आभार प्रकट करते हैं।
आइए जानें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गुस्सा आने का प्रमुख कारण क्या था? नीति आयोग के प्रमुख ने हाल ही में यह स्पष्ट किया कि केवल एक प्रतिशत लोग ही आयकर कर भुगतान करते हैं, जबकि इससे अधिक तो प्रति वर्ष देश की युनिवर्सिटीज और उच्च शिक्षण सस्थानों से पास होकर होनहार विद्यार्थी निकलते हैं। जबकि सरकार ने 2012-13 में अनुमानत: 20 प्रतिशत ऐसे लोगों की संख्या आंकी थी जो करदाता हो सकते हैं। उस समय सरकार ने पहली बार टैक्सेबल इनकम का डाटाजारी करते हुए बताया था कि केवल कंपनियां ही पांच प्रतिशत अधिक अपने कर्मचारियों के वेतन का आयकर अदा कर सकतीं हैं। सीटीबीटी ने प्रत्यक्ष कर के आंकड़ों को जारी करके एक तरह से खुलासा कर दिया है कि आयकर के दायरे में आने वालों की संख्या को आसानी से देखा जा सकता है। इन आंकड़ों को देखने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट किया था कि अब सूचना नीति को और अधिक पारदर्शी बनाने के लिए बड़ा कदम उठाने की जरूरत है। सीबीडीटी के आंकड़ों में स्पष्ट दर्शाया गया है कि प्रत्यक्ष कर का कलेक्शन का ग्राफ बहुत तेजी से गिरा है। आंकड़ों की माने तो 2011-2016 के पांच वर्षों के दौरान मात्र 8.5 प्रतिशत ही कलेक् शन हो पाया जबकि इससे पहले के पांच वर्षों में यह आंकड़ा 14.1 प्रतिशत था। जनसंख्या बढऩे के साथ कर का दायरा घटने से निश्चित रूप ये संदेह उत्पन्न होता है कि ये गोलमाल कहां से हो रहा है।
ऐसा नहीं कि सरकार को दिये जाने वाला कर का राजस्व घटने से कंपनियों का कारोबार या मुनाफा कम हो रहा हो। बल्कि इसमें उल्टे इजाफा हो रहा है तो सरकार को ही इस तरह का झटका क्यों। कारपोरेट टैक्स का भी यही हाल था। 2011-16 के पांच वर्षों के दौरान कारपोरेट टैक्स की वार्षिक दर 7.1 प्रतिशत थी जबकि इससे पूर्व के पांच वर्षों में यह दर 15.6 प्रतिशत देखी जा सकती है। मजेदार बात यह है कि एलपीजी की सबसिडी लेने के लिए 13.3 लाख लोगों ने अपनी सालाना आय 10 लाख रुपये से अधिक घोषित कर चुके हैं। इनमें सरकारी कर्मचारी भी शामिल हैं। इन आंकड़ों की बाजीगरी में यह दिखा रहा है कि सरकार को शेष 19 प्रतिशत उन लोगों की तलाश थी जो सक्षम होते हुए भी कर अदा नहीं कर रहे थे। इसके साथ कारपोरेट टैक्स में भी भारी धंाधली हो रही थी। इसको पूरा करने के लिए सरकार ने पूरा दो वर्ष का समय दिया परन्तु जब वहीं ढाक के तीन पात वाली दशा रही तब सरकार को गुस्सा आया और उन्होंने जो रास्ता निकाला और आगे निकाला जाएगा वह भी हमारे सामने आएगा।

No comments:

Post a Comment