सपा के महासंग्राम पर बुद्धिजीवियों से लेकर गृहणियों तक को आशंका
समाजवादी पार्टी में महासंग्राम अब चरम पर पहुंच गया है। पार्टी दो फाड़ हो चुकी है। अब सिर्फ औपचारिकताएं बाकीं रह गर्ईं हैं। इस बीच बुद्धिजीनियों से लेकर गृहणियों के मन में यह आशंका उत्पन्न हो गई है कि समाजवादीपार्टी का यह हाईप्रोफाइल ड्रामा सिर्फ यूपी का चुनाव जीतने के लिए ही है। मुलायम सिंह और शिवपाल सिह की समाजवादी पार्टी इस स्थिति में नहीं है कि वह आसानी से चुनाव जीत कर सरकार बना सके। सिर्फ अखिलेश यादव के विकास कार्य और युवाओं में उनकी उदारवादी नेता की छवि पार्टी की नैया पार लगा सकती है। इसी विचार को ध्यान में रखते हुए चुनाव के समय इस हाईप्रोफाइल ड्रामा को सबसे अधिक चर्चा में लाकर पब्लिक का ध्यान अखिलेश यादव की बेचारगी की ओर ले जाना है ताकि जनता नोटबंदी की चाल से बाहर निकल कर अखिलेश यादव को एक बार और समर्थन दे दे तो निश्चित रूप से सपा की सरकार बन जाएगी और सरकार बनने के बाद तो कुनबा अपना ही है। कहावत है कि सुबह का भूला शाम को घर लौट आता है तो उसे भला नहीं कहते हैं, इसी तरह अखिलेश यादव सरकार बनने के बाद माफी मांंग लेंगे और मुलायम माफ कर देंगे और फिर समाजवादी पार्टी एक हो जाएगी। लेकिन इस गलतफहमीं में न रहें सपा नेता क्योंकि ये पब्लिक है सब जानती है। आज के आधुनिक संसाधन भी ऐसे हैं कि वह सारी पोल खोल देते हैँ। कहते हैँ कि जिसे अपनी सात पुश्तों के बारे में पता करना हो वह चुनाव लड़ जाए बाद बाकी काम तो उसके विपक्षी बिना खर्च के कर देते हैं। इसलिए सपा नेताओं के मन में ऐसी योजनाएं चल रहीं है तो पहले ये सफल नहीं होंगी और सफल भी हो गईं तो सिर्फ कांठ की हांडी के समान होंगी जो एक बार ही चढ़ पाती है। पिता के निष्कासन से उत्पन्न सहानुभूति लहर का लाभ अखिलेश यादव को मिल सकता है परंतु इसे संभाल कर रखना बहुत बड़ा काम होगा क्योंकि ये पब्लिक है सब जानती है। मालूम हो कि 1984 में राजीव गांधी को सहानुभूमि लहर में जनता का बम्पर समर्थन मिला था। विपक्ष साफ हो गया था लेकिन वह संभाल नहीं पाए तो नतीजा क्या हुआ कि अगले चुनाव में वोटों के लाले पड़ गए थे और उन्हें हार थक कर विपक्ष में बैठना पड़ा था। सपा को इससे सबक लेकर ही काम करना होगा तो उचित बाकी तो समय होत बलवान। इस आशंका को बुद्धिजीवियों ने पहले ही ताड़ लिया था। उनकी इस आशंका के चलते कल ही एक पोस्ट हम कर चुके हैं जिसका शीर्षक था ‘बगावत,अदावत या बनावट’
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