कई समीकरणों से लोगों के मन में उठी शंका
समाजवादी पार्टी का कुनबाई महाभारत का 18 घंटे का हाईवोल्टेज ड्रामा बाप-बेटे के बीच की नूराकुश्ती थी। दिखाने को यह था कि पार्टी पर नजर रखने वाले को मुलायम सिंह वर्दाश्त नहीं कर पाएंगे। लेकिन बढ़ती उम्र के चलते वे पार्टी की कमान बेटे को सौंपना चाहते थे। यदि सीधे-सीधे पार्टी की कमान अखिलेश यादव को सौंप देते तो इससे असली महाभारत हो जाती। मुलायम सिंह ने मंझे हुए शतरंज के खिलाड़ी की भांति चाल चलते हुए पार्टी को बचाकर अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी बेटे को सौंपने का जिस तरह से मार्ग प्रशस्त किया है, उससे बड़े-बड़े बुद्धिजीवी चकरा रहे हैं। बताया जा रहा है कि इस महाभारत में उनके समधी और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने भी बड़ी अहम भूमिका निभाई है। मुलायम सिंह के करीबी जानकार कहते हैं कि मुलायम सिंह को किसी अपने आदमी को आगे बढ़ाना होता है तो या तो उसके नाम की सिफारिश दूसरे से करवाते हैं या उसे डाट डपट कर उस आदमी के पास भगा देते हैं जो उसका काम करेगा। अखिलेश के मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष पर बैठाने के लिए मुलायम सिंह ने पहला तरीका अपनाते हुए दूसरों से नाम प्रस्तावित कराया। अब चूंकि मुख्यमंत्री के साथ पार्टी अध्यक्ष पद देने के गंभीर मसले को आसानी से नहीं निपटाया जा सकता था। इसलिए पहले अखिलेश यादव को रामगोपाल यादव के करीब आने दिया। दोनों के बीच खूब खिचड़ी पकने दी। इस बीच सत्ता को लेकर अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव के बीच चल रहे झगड़े को शांत करने के लिए अखिलेश यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर शिवपाल सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। प्रदेश अध्यक्ष बनने से अखिलेश को कोई परेशानी न होती अगर ये चुनाव न आते और टिकट बांटने की पूरी जिम्मेदारी उन्हें नहीं दी गइ्र्र होती। जिम्मेदारी मिलते ही शिवपाल सिंह ने अखिलेश समर्थकों के पत्ते काटने शुरू कर दिए। कहते हैं कि दो बंदरों की लड़ाई का लाभ बिल्ली उठाती है। यह भी कहा जाता है कि बिल्ली के भाग्य से छीका (दूध रखने वाला रस्सी का थैला) भी टूटता है। इसी खास मौके की ताक में बैठे पुराने सपा के चाणक्य अमर सिंह ने शिवपाल सिंह यादव पर डोरे डाले कि यदि मेरी वापसी कराओगे तो तुम्हें अगला मुख्यमंत्री बनवा देंगे। शिवपाल सिंह यादव ने मुलायम सिंह यादव को मना कर अमर सिंह की वापसी करवा तो दी लेकिन अखिलेश यादव ने फिर विरोध किया। इसके बाद की कहानी सामने है मुलायम सिंह न तो अमर सिंह के बुरे हुए नही शिवपाल सिंह के बुरे हुए। इस तरह से मुलायम सिंह यादव भाई शिवपाल सिंह यादव और अमर सिंह का साथ देकर अखिलेश-रामगोपाल के विरोधी भी बनने का दिखावा करते रहे। इस बीच अखिलेश यादव ने चुनाव को अपनी ओर करने के लिए अमेरिका में राष्ट्रपति पद का चुनाव लडऩे वाले हिलेरी क्लिंटन और अल गोरे का चुनाव मैनेजमेंट संभालने वाले प्रोफेसर स्टीव जाडिंग को हायर कर लिया। उनके कहने पर ही यह सारा खेल खेला गया। इस बात की भनक किसी सपा कार्यकर्ता को लगी तो उसने नौसिखियापन में गत 24 जुलाई को एक ईमेल करके लीक कर दिया। इस ईमेल को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया। बीबीसी लंदन ने इस हाईवोल्टेज ड्रामा पर मुलायम कुनबे के पैतृक गांव सैफई में लोगों की नब्ज टटोली तो सभी ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि यह तो उनके घर की लड़ाई थी और ऐसा तो होना ही था। कोई नई बात नहीं है। बीबीसी के अनुसार सैफई गांव में प्रवेश करते ही तीन पहिये वाली साइकिल पर घूम रहे एक बुज़ुर्ग व्यक्ति राम रतन से हमारा सामना हुआ। कुछ लोगों ने बताया कि ये गांव के सबसे उम्रदराज़ व्यक्ति हैं। ख़ुद राम रतन का कहना था कि वो सौ साल के हैं।उन्होंने यादव परिवार में चल रही खींचतान के बारे में कहा कि इस बारे में हम कुछ नहीं कहेंगे। राजाओं की लड़ाई में हमारी क्या दिलचस्पी? टीवी में देख लेते हैं बस।वहीं जब हमारी मुलाक़ात सैफ़ई मेडिकल कॉलेज के एक डॉक्टर अक्षय यादव से हुई तो उन्होंने इस पर कुछ बताने की कोशिश ज़रूर की, लेकिन नफ़ा-नुक़सान तौलकर. वो कहते हैं, कोई लड़ाई, कोई तकऱार नहीं है. नेताजी पार्टी के मुखिया हैं और अखिलेश यादव उनके उत्तराधिकारी. बाकी सब कार्यकर्ता हैं। इस वीआईपी गांव के प्रधान दर्शन सिंह यादव गांव के चौराहे पर एक चाय की दुकान पर मिले तो बोले कि घर की लड़ाई है, हम बीच में क्यों टांग अड़ाएं. आज लड़ रहे हैं, कल फिर एक हो जाएंगे।
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