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Friday, 30 December 2016

क्या है रामगोपाल और अखिलेश की सियासी कैमिस्ट्री

सत्ता में होने के कारण अखिलेश यादव को विधायकों और मंत्रियों का भरपूर समर्थन मिल रहा है और युवाओं का भी समर्थन मिल रहा है। असल शक्ति परीक्षण तो जनता जनार्दन के बीच पार्टी संगठन को लेकर होना है, वहां पर अखिलेश यादव और राम गोपाल की जोड़ी को कितनी सफलता मिलती है, यह तो वक्त बताएगा। फिलहाल राजनीतिक समीकरण कहते हैं कि सपा को बेदाग छवि बनाने की कोशिश में पार्टी के अंदर रहकर राम गोपाल यादव जिस तरह से काफी बरसों से छटपटा रहे थे उन्हें अखिलेश यादव जैसा सहारा मिल गया है। इसलिए यह भी कहा जा रहा है कि रामगोपाल यादव और अखिलेश की जोड़ी पार्टी का 60 प्रतिशत हिस्सा अपने पाले में कर लेते हैँ तो जीत उनकी हो जाएगी। रामगोपाल यादव को यह विश्वास है कि पार्टी के साफ सुथरी छवि वाले बुजुर्ग या सीनियर नेता उनकी तरफ आ सकते हैं। दूसरी तरफ अखिलेश यादव को यह विश्वास है कि पार्टी के युवा नेता पूरी तरह से उनके साथ हैं। दोनों के इस विश्वास को उनके राजनीतिक सलाहकारों ने भंाप करके ही उन्हें बगावत का झंडा थामने की सलाह दे डाली है। जैसे कि नोट बंदी पर उनके मंत्रियों ने ही पीएम मोदी को मना किया था कि यह सही समय नहीं है लेकिन मोदी ने अपना निर्णय सुनाकर सबको अवाक कर दिया था। किन्तु लगातार 50 दिनों तक दिन-रात मेहनत करके आम आदमी के दिलो-दिमाग पर नोटबंदी के फैसले को ऐसा बैठा दिया कि वह बाकी सारे महंगाई,भ्रष्टाचार,कालाधन के मुद्दे को भुला दिया था। उसी तरह अखिलेश यादव और राम गोपाल यादव के लिए सही मौका है। मोदी ने जहां 50 दिन में अपना काम कर दिया वहीं अखिलेश और राम गोपाल यादव को भी 50 दिन मिलने वाले हैं। चुनाव तिथि की घोषणा के बाद 40 दिन का समय मिलता है। वह दोनोंं नेताओं के लिए काफी है। क्योंकि हमारे समाज में एक कहावत प्रचलित है कि नई बहू का सब स्वागत करते हैं। गुण-लक्षण तो बाद में सामने आते हैं। तब तक तो वह घर की मालकिन बन चुकी होती है। ऐसे ही अखिलेश-रामगोपाल की जोड़ी हिट हो जाएगी। ऐसा लोगों का अनुमान है।

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