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Saturday, 24 December 2016

जन्म दिन पर विशेष: वाजपेयी की राह में नरेन्द्र मोदी

हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा
काल के कपाल पर रोज लिखता और मिटाता हूं
आज 25 दिसम्बर है। पूरा विश्व प्रभु यीशू का जन्म दिन मना रहा है। हर ओर खुशी का माहौल है। मैं ईसाई समुदाय को क्रिसमस डे पर हैप्पी क्रिसमस कहना चाहता हूं। साथ ही हमारे भारतीय जननेता अटल बिहारी वाजपेयी का भी जन्मदिन आज के ही दिन हुआ था। अपने समय में अकेले ही अटल बिहारी वाजपेयी पूरे भारत का दिल जीतने वाले नेता है। बेमिसाल नेता श्री वाजपेयी की आज याद ताजा हो आई। उनके दीर्घजीवन की कामना करते हैंं। आइये उनकी कुछ कविताओं के माध्यम से आज के माहौल और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रुख पर चिंतन किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आजकल देश को सुधारने का बीड़ा उठाया है। इस पर श्री वाजपेयी की यह कविता खूब खरी उतरती है कि आज इस बात की जरूरत क्यों पड़ी?
गीत नही गाता हुँ 7
बेनकाब चेहरे हैं , दाग बड़े गहरे हैं,टूटता तिलिस्म,
आज सच से भय ख़ाता हूँ , गीत नही गाता हुँ ।
लगी कुछ ऐसी नजऱ, बिखरा शीशे सा शहर,
अपनो के मेले में मिट नही पता हूँ, गीत नही गाता हुँ ।
पीठ में छुरी सा चाँद, राहु गया रेखा फाँद,
मुक्ता के क्षण में , बार बार बाँध जाता हूँ, गीत नही गाता हुँ ।
श्री वाजपेयी की दूसरी यह रचना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हौसले, विश्वास और भविष्य के इरादों पर पूरी तरह से सच उतरती है
गीत नया गाता हूँ7
टूटे हुए तारों से , फूटे बसंती स्वर.
पत्थर की छाती में उग आया ना अंकुर,
झड़े सब पीले पात, कोयल की कुक रात,
प्राची में अरुणिमा की रेत देख पता हूँ, गीत नया गाता हूँ7
टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी,
अंत: की चिर व्यथा, पलाको पर ठिठकी,
हार नही मानूगा, रार नही ठानूंगा,
काल के कपाल पर लिखता, मिटाता हूँ।
गीत नया गाता हूँ।
आज देश में ईमानदार लोगों की दशा क्या हैख् इस बात को मोदी भी बताते हुए नहीं अघाते हैं और वे ईमानदारों के लिए क्या करना चाहते हैं। इस पर यह रचना खूब जंचती है
कौरव कौन
कौन पांडव,
टेढ़ा सवाल है।
दोनों ओर शकुनि
का फैला
कूटजाल है।
धर्मराज ने छोड़ी नहीं
जुए की लत है।
हर पंचायत में
पांचाली
अपमानित है।
बिना कृष्ण के
आज
महाभारत होना है,
कोई राजा बने,
रंक को तो रोना है।
आज देश में आम जनता को नोटबंदी के निर्णय से हो रही परेशानी का चित्रण करते हुए साथ ही कालेधन वालों को मुख्य धारा में आने के लिए चेतावनी देने वाले संदेश पर यह कविता खरी उतरती है।

बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढ़लना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
कुछ काँटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

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