प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नोट बंदी के निर्णय से बैंक और बैंक कर्मचारियों से कड़ी परीक्षा हो गई। नोट बंदी से लोगों के पास नकदी कम होने के कारण कारपोरेट लोन, पर्सनल लोन लेना ही बंद कर दिया जबकि बैंक कर्मियों में से दागी बैंक कर्मियों ने नोट बंदी की आड़ में काले धन को सफेद बनाने के खेल में अपनी चांदी बना ली। बैंक जहां अपनी साख बचाने के लिए रिजर्व बैंक से उपाय करने का आग्रह कर रहे हैं। सरकार से गुहार कर रहे हैं। वहीं तिकड़मी चाल से मालामाल हुए बैँक कर्मियों की धरपकड़ हो रही है। इससे दागी कर्मचारियों वाली बैंकों की साख भी जनमानस में धूमिल हो रही है क्योंकि बैंक का व्यवसाय विश्वास का होता है। निजी क्षेत्र के बैंकों को इस अवधि में 17000 करोड़ की आय कम हुई। गत 17 दिसम्बर को सरकार के साथ हुई बैंकरों की बैठक में बैंकरों ने मौजूदा स्थिति पर चिंता जताते हुए सरकार से बैंकों के प्रमोशन के लिए उपाय करने का आग्रह किया। सरकार ने हरसंभव उपाय करने का आश्वासन भी दिया है।
रिजर्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार गत अप्रैल से दिसम्बर 2016 में बैँकों का कारोबार मात्र 1.2 प्रतिशत यानी 73 लाख करोड़ रुपये ही बढ़ सकता जबकि 2015 की इसी अवधि में बैंकों के कारोबार में 6.2 प्रतिशत यानी 69.9 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोत्तरी हुई थी। इससे पूर्व के वर्ष में तो बैंकों ने खासी कमाई की थी और उनका कारोबार 13.6 प्रतिशत यानी 105.9 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ा था।
रिजर्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार गत अप्रैल से दिसम्बर 2016 में बैँकों का कारोबार मात्र 1.2 प्रतिशत यानी 73 लाख करोड़ रुपये ही बढ़ सकता जबकि 2015 की इसी अवधि में बैंकों के कारोबार में 6.2 प्रतिशत यानी 69.9 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोत्तरी हुई थी। इससे पूर्व के वर्ष में तो बैंकों ने खासी कमाई की थी और उनका कारोबार 13.6 प्रतिशत यानी 105.9 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ा था।
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