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Sunday, 11 December 2016

यूपी की सियासत पर नोटबंदी भारी

सभी दल करने लगे नए सिरे से तैयारी

देश की राजनीतिक दशा और दिशा करने वाले उत्तर प्रदेश पर सियासी कब्जा करने के लिए तमाम राजनीतिक दल वर्षों से तैयारी कर रहे थे। सभी दलों ने अपना-अपना मोर्चा खोल कर जनता पर डोरे डालने शुरू कर दिया था। इस बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नोट बंदी के फैसले ने सियासी भूकम्प ला दिया। सभी दल चारों खाने चित हो गए। एक पल तो किसी भी दल को यह समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। जो भी इस फैसले के खिलाफ बोलता वह स्वयं ही कठघरे में खड़ा हो जाता। अब जनता इतनी समझदार हो गई कि कौन क्या कर रहा है और कौन क्या चाहता है, बहुत सोच समझ कर फैसला करती है तभी चुनावी परिणाम बहुत गंभीर होते हैं। नोट बंदी के बाद आम जनता को हुई परेशानी को देखते हुए विपक्ष ने इसे अपने पक्ष में भुनाना चाहा जबकि सरकार ने स्वयं को जनता के समक्ष आत्मसमर्पण करते हुए 50 दिन की मोहलत मांगते हुए जनसमर्थन मांगा। सरकार डरी हुई थी और विपक्ष हावी हुआ जा रहा था। लेकिन कहते हैं कि सत्य की विजय होती है और वही हुआ। प्रधानमंत्री ने अपने फैसले पर जनता की राय मांगी तो 85 प्रतिशत जनता ने समर्थन दिया। इसे यदि चुनाव परिणाम में बदल दिया जाए तो सत्तारूढ़ एनडीए को 131 सीट का फायदा होता और लोकसभा में उसके सदस्यों की संख्या 336 से बढक़र 467 हो जाती। इसमें यदि केवल भाजपा की बात करें तो उसकी सीट संख्या 307 से बढक़र 438 हो जाती और उसे अकेले 131 सीट का फायदा होता। ऐसे स्थिति हो जाती तो विपक्ष के पास क्या बचता? यह परिणाम उस समय देखने को मिले जब विपक्षी दलों ने जब भारत बंद करके अपना जनसमर्थन टटोलना चाहा तो पहले तो विपक्ष ही बिखर गया और इसके बाद बंद मामूली भी सफल नहीं हो पाया। तो विपक्षी दलों की अगुआई करने वाले कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी को थोड़ा पीछे मुडक़र देख लेना चाहिए कि भूकम्प उनके बोलने से नहीं आएगा बल्कि नोटबंदी जैसे साहसिक कदम उठाने आ चुका है। इस सियासी भूकम्प के झटके से सारा विपक्ष बिखर का कोई यहां गिरा तो कोई वहां गिरा। दूसरों की बात क्या करें राहुल गांधी अपनी पार्टी का हाल देख लें जो पार्टी शीला दीक्षित और राजबब्बर के कांधे पर चढक़र यूपी में सरकार बनाने की तैयार कर रही थी वो अब सत्तारूढ़ दल समाजवादी पार्टी से समझौते की बात क्यों कर रही है। बसपा सुप्रीमों सुश्री मायावती लगातार पीएम पर हमला बोल रहीं हैं जबकि मनमोहन सिंह के राज में सीबीआई उनके पीछे हमेशा आय से अधिक मामले में दौड़ती रही है। उनके पैतृक गांव गौतमबुद्धनगर के बादलपुर में अरबों की खड़ी कोठी और सूरजपुर में खड़ा फाइव स्टार होटल ही सारी कहानी कह दे रही है। समाजवादी पार्टी पारिवारिक कलह से संतरे की फांक की तरह बिखरी हुई जिसे समेटने के लिए सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह को राजनीति में चाणक्य माने जाने वाले अमर सिंह का सहारा लेना पड़ा है। 

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