मोदी पर लगाया पुराना घिसा-पिटा आरोप
नोट बंदी पर घोटाले का आरोप लगा कर प्रधानमंंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा रिश्वत लिए जाने के गंभीर आरोप लगा कर और संसद में भूकंप लाने का बयान देकर जिस तेजी से कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी सियासत के क्षेत्र में ऊपर उठे थे, वहीं गुजरात जाकर जब उन्होंने अपना मुंह खोला तो उतनी ही तेजी से नीचे आ गए। राहुल गांधी को शायद यह नहीं मालूम कि बंद मुट्ठी लाख की और खुल गई तो राख की। इस बात को ध्यान में रखते तो राहुल गांधी वास्तव में कुछ कर जाते लेकिन जिस तरह से पुराना घिसा पिटा आरोप लगाकर अपनी खुद की खिल्ली उड़वाई है उससे उनकी छवि अपरिपक्व नेता की तरह हो गई है। लगता है कि उन्होंन अपने पिता स्व. श्री राजीव गांधी की पहली पारी से सबक नहीं लिया है। इसी तरह श्री राजीव गांधी को उनके ही नजदीकियों ने प्रचंड बहुमत वाली सरकार को ऐसा झटका दिया कि दोबारा सत्ता में आने से बहुत दूर रह गयी थी। लेकिन उससे राजीव गांधी ने सबक लिया और फिर तेजी से आगे बढ़ गए थे। इसी तरह राहुल गांधी को अपने नजदीकी ‘विभीषणों’ को पहचानना होगा वरना चुनावी बिसात में हाशिये पर आ जाएंगे। नोट बंदी पर संसद और विपक्षी दलों के साथ जिसतरह से नेतृत्व किया था उससे लगने लगा था कि राहुल गांधी की दूसरी पारी अपने पिता राजीव गांधी की तरह शुरू हो रही है लेकिन फिर भूकंप की जगह फुस्स होना सियासत में कतई उचित नहीं कहा जा सकता। अभी से कहा जाने लगा है कि कांग्रेस के वे सारे पीके फार्मूले बेकार हो गए हैं, जिनके दम पर कांग्रेस प्रदेश में सरकार बनाने का सपना देख रही थी। ये सब राहुल गांधी की नासमझी से हुआ। जब नोट बंदी पर सरकार पर दनादन हमला बोल रहे थे उस समय राहुल गांधी को मोदी के संग बैठक करने की क्या जरूरत थी? इससे उनके साथी दल भी नाराज हो गए। कांग्रेस फिर से अलग-थलग पड़ गई है।
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