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Wednesday, 7 December 2016

क्या अगले 20 दिनों में देश की अर्थव्यवस्था हो जाएगी नारमल

नोटबंदी के एक माह बाद जनता के मन में उठते कई सवाल

 नोटबंदी  फैसला लागू हुए एक महीना हो गया हैं।  बैंकों के सामने लगने वाली लाइनों की लम्बाई घटी है। एटीएम के सामने कभी-कभी ही लाइन लगती है। अधिकांश एटीएम के शटर गिरे रहते हैं। जो एटीएम खुले हों और वहाँ लाइन न दिखे, समझ लीजिए कि वहाँ नक़दी नहीं है! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि बस पचास दिन की तकलीफ़ है. तीस दिन तो निकल गए. बीस दिन बाद क्या हालात पहले की तरह सामान्य हो जायेंगे? क्या लाइनें ख़त्म हो जाएंगी?
और क्या 30 दिसंबर के बाद ही हमें पता चल पाएगा कि नोटबंदी से फ़ायदा हुआ या नुक़सान? और हुआ तो कितना? वैसे तो कहा जा रहा है कि इसका फ़ायदा लंबे समय बाद दिखेगा। कितने लंबे समय बाद? और क्या फ़ायदा दिखेगा? यह तो समय ही बतायेगा। एक महीने बाद कुछ बातें अब साफ़ हो चुकी हैं. एक, जैसा शुरू में सोचा गया था कि कऱीब ढाई-तीन लाख करोड़ रुपये की काली नक़दी बैंकों में नहीं लौटेगी, वह ग़लत था। अब ख़ुद सरकार का अनुमान है कि कऱीब-कऱीब सारी रद्द की गई करेंसी बैंकों में वापस जमा हो जाएगी। विकास दर पर इसका विपरीत असर पड़ेगा रिज़र्व बैंक ने मान लिया है कि विकास दर 7.6 परसेंट  से घटकर 7.1 परेसेंट ही रह सकती है। तीसरी बात यह कि एटीएम और बैंकों से पैसा पाने की लाइनें शायद अभी कुछ ज़्यादा दिनों तक देखने को मिलें। सरकार का तर्क है कि ज़्यादा करेंसी से भ्रष्टाचार और महँगाई बढ़ती है, इसलिए वह लेस-कैश इकॉनॉमी की तरफ़ बढऩा चाहती है, यानी बाज़ार में नक़दी जानबूझकर कम कम से कम ही रखी जाएगी। यानी पहले जैसी करेंसी बाजार में नहीं रहेगी। ताकि लोग डिजिटल लेनदेन के लिए मजबूर हों। इसमें कोई शक़ नहीं कि लोग मजबूर तो हुए हैं. हम भी अख़बारों में तस्वीर देख रहे हैं कि किसी सब्ज़ीवाले ने या मछली बेचनेवाली ने पेटीएम से लेनदेन शुरू कर दिया है. तो डिजिटल लेनदेन बेशक बढ़ा है। आठ नवंबर के बाद से डेबिट-क्रेडिट कार्ड से होनेवाले लेनदेन की संख्या बढ़ कर दोगुनी हो गई, लेकिन प्रति डेबिट कार्ड ख़र्च का औसत 27 सौ रुपये से घट कर दो हज़ार रुपये ही रह गया। क्रेडिट कार्ड के मामले में यह गिरावट 25-30 परसेंट तक है,क्यों? इसलिए कि लोग आटा-दाल-दवा जैसे ज़रूरी ख़र्चों के लिए कार्ड इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन शौकिय़ा ख़र्चे फि़लहाल रोक रहे हैं.। लोग लाइनों में लग कर अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहते हैं। इसीलिए डिजिटल इकॉनॉमी की रीढ़ कहे जानेवाले मोबाइल फ़ोन तक की खऱीद में इस महीने भारी गिरावट देखी गई है।

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