नोट बंदी के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गई है सियासत
नोट बंदी के निर्णय ने यूपी की सियासत में भगदड़ मचा कर रख दी है। हरेक दल अब अपनी सफलता के प्रति सशंकित है। इससे पहले सपा जहां अपनी उपलब्धियों को गिनाकर सत्ता में आने का दावा कर रही थी, वहीं बसपा सपा विरोधी लहर को कैश कराकर सत्ता में आने का दावा कर रही थी। कांग्रेस में भी पीके के कई प्रयोग चल रहे थे उनसे पार्टी और कार्यकर्ताओं में थोड़ी जान सी आ गई थी। भाजपा में अवश्य ही उथल-पुथल मची हुई थी। जहां सभी दलों के मुख्यमंत्री पद के चेहरे साफ थे। वहीं भाजपा को एक चेहरा ढंूढने में परेशानी हो रही थी। कभी राजनाथ सिंह के सिर पर ताज रखा जाता तो कभी स्मृति ईरानी की ओर यह ताज खिसकाया जाता और योगी आदित्यनाथ की तरफ ताज खिसकाने की कोशिश हुई तो लोगों ने नाक-भौं सिकोडऩे लगे थे। इन सभी झंझावातों के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नोट बंदी के रूप में तुरुप के इक्के की चाल चली। यह चाल हिट तो हो गई लेकिन चुनाव आते-आते इस चाल के उलटे असर दिखने की आशंका भी उठ खड़ी हुई है। भाजपा और आरएसएस एवं अन्य अनुषांगिक संगठनों को यह उम्मीद बढ़ी है कि मोदी जी की इस चाल से यूपी की जनता को भाजपा के पक्ष में लाया जा सकता है लेकिन इस दौरान आम जनता जो असली वोटर है, वो सडक़ पर आ गई। गांव का किसान जिसे ग्राम देवता कहा जाता है। दोनों ही दोहरी मार झेल रहे हैं। अभी तो एक माह गुजरा है लोग कराहने लगे हैं। समाज में इज्जत के लिए मर मिटने वाले अपनी संतानों के कामकाज नहीं कर पा रहे हैं, बुजुर्गो के मरने के बाद तेरहवीं जैसे कार्यक्रम अपने मनमर्जी के माफिक नहीं कर पा रहे हैं। सारा गुस्सा मोदी सरकार के प्रति उबल रहा है। यही मोदी सरकार यूपी में भाजपा के लिए राह बनाने वाली है, इस सत्यता से कोई मुंह नहीं मोड़ सकता। अभी तो चुनाव आने में कई महीने बाकीं हैं। तब तक भाजपा के पक्ष में मोदी सरकार कैसे डैमेज कंट्रोल करेगी। इस बात की चिंता भाजपा और उसके समर्थक वोटरों को सताए जा रही है। क्योंकि सपा के नेता मुलायम सिंह और अखिलेश यादव अपनी चालों से आम जनता को लुभा रहे हैं। वहीं बसपा की मायावती रोज-रोज प्रेस कांफ्रेंस करके अपने वोटरों और उनके समर्थकों को आगाह कर रहीं हैं। भाजपा के पक्ष में एक खबर अवश्य ही कही जा सकती है कि कांग्रेस पार्टी जो पीके फार्मूले को मानकर शीला दीक्षित के नेतृत्व में चुनाव लडऩे जा रही थी, वो अब सपा से तालमेल की बात कर रही है । इसका सीधा सा मतलब यह है कि कांग्रेस पहले से भी कमजोर हो गई है।भाजपा ने जल्द ही डैमेज कंट्रेाल न कर लिया तो अवश्य ही यूपी के दंगल में मंगल की जगह अमंगल होगा। मोदी सरकार की अब अग्नि परीक्षा होगी कि चुनाव से पहले यूपी की असल आम जनता को किस तरह से यह संदेश देने में कामयाब होगी कि नोटबंदी का फैसला गलत नहीं था जो मोदी सरकार ने सोचा था वैसा ही सबकुछ हो रहा है और आम आदमी को कई तरीके के लाभ मिलेंगे।
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