गेहूं के आटे पर सबसे अधिक महंगाई का दिखा असर
नोट बंदी के फैसले का लंबे समय में अच्छा असर भले ही दिखे फिलहाल आम जनता गेहूं के साथ घुन जैसी पिस रही है। पहले तो नोट बंदी ने बैंकों की लाइन ने हलकान कर दिया। लोगों के पास पहले की अपेक्षा नकदी व आय के स्रोत कम हो गए हैं। दूसरी ओर बाजार में महंगाई बढऩे लगी है। यह महंगाईकृत्रिम है और नोट बंदी और कालेधन के खिलाफ छेड़े गए अभियान से सतर्क हो कर लोगों ने बाजार से अपनी पूंजी निकाल कर विदेशों में इनवेस्ट करना शुरूकर दिया है। देश का काला धन और तेजी से विदेशों में जा रहा है। यहां जरूरी सामान का स्टोर करके बाजार में कृत्रिम कमी की जा रही है। इससे महंगाई बढ़ रही है और खराब क्वालिटी वाली कंपनियों की भी चांदी हो रही है। आठ नवंबर से पहले आशीर्वाद कंपनी का गेहूं का आटा फुटकर में 280 रुपये प्रति 10 किलो का पैक बिक रहा था जो अब एक माह बाह यह रेट 320 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया है। इसी तरह अन्य कंपनियों ने भी अपने प्रोडक्ट के रेट बढ़ा दिये हैं। यही नहीं इन कंपनियों के रेट बढ़ते देख कर खुला चक्की का आटा जो 19 रुपये किलो बिकता था वो आज 26 रुपये प्रतिकिलों की दर से बिक रहा। आटे का जिक्र इसलिए किया जा रहा है क्योंंकि हर आदमी की अत्यावश्यक आवश्यकता है। इसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। इसी तरह अन्य खाद्य वस्तुओं की दशा और दिशा तय हो रही है।किसानों पर हो रहा है उल्टा असर
नोट बंदी के फैेसले का किसानों पर दोहरा असर पड़ रहा है। जहां उसे रबी के मौसम की बुआई के लिए बीज और खाद की किल्लत हो रही है वहीं उसे अपनी फसल का सही खरीददार नहीं मिल पा रहा है। आढ़तियों और दलालों के मौकापरस्ती खेल के कारण उसे अपनी फसल को औने-पौने दामों में बेचनी पड़ रही है। इसका असर यह हो रहा है मजबूत व्यापारी,कालाबाजारी इस समय जमकर चांदी कूट रहे हैं। आम आदमी दोहरी मार झेल रहा है और सरकार को इस आशा में समर्थन दे रहा है कि 30 दिसम्बर के बाद अच्छे दिन आने वाले हैं।
नोट बंदी के फैसले पर अपना नजरिया पेश करते हुए आर्थिक मामलों के जानकार भारत झुनझुनवाला ने बीबीसी को बताया कि मैं नोटबंदी के फ़ैसले के खिलाफ़ हूं। इसका मूल मक़सद काले धन पर चोट करना था। सरकार को इसमें कोई कामयाबी नहीं मिली है। बड़े पैसे वाले लोगों ने अपना जुगाड़ कर लिया, काले धन को रिसाइकल कर लिया।आम जनता को काफ़ी तकलीफें हुईं। मुद्रा के अभाव से जो नुकसान हुआ, वह कम है. बड़े उद्योगपतियों या कारपोरेट जगत का ज़्यादातर कामकाज नकद में नहीं होता. उन पर ख़ास असर नहीं पड़ा है। मझोले और छोटे व्यापारियों और उद्योगपतियों पर कुछ असर पड़ा है लेकिन उन्होंने भी कुछ न कुछ इंतजाम कर लिया। मुद्रा की कमी से रिक्शा वालों या रेहड़ी वालों को ज़्यादा दिक्क़तें हैं। बड़ा नुक़सान यह है कि लोगों का करेंसी से भरोसा उठ गया। लोग कहने लगे हैं कि नए 2,000 के नोट भी बंद हो सकते हैं, 100 रुपए के नोट भी बंद हो सकते हैं। लोगों में घबराहट है. इस वजह से अर्थव्यवस्था सहमी हुई है, वह ज़्यादा महत्वपूर्ण है। सरकार कहती है कि नोटबंदी की वजह से साढ़े ग्यारह लाख करोड़ रुपए बैंकों में जमा हो गए. इसमें से चार लाख करोड़ रुपए बैंकों ने लोगों को दे दिए. इस हिसाब से बैंकों के पास साढ़े सात लाख करोड़ रुपए जमा हो गए. सरकार के पास पैसे आ गए, पर लोगों के पास नहीं रहे। ऐसे कई लोग होंगे जो अपनी बचत बैंक में जमा करने के बाद उसे वापस लेकर खर्च नहीं करेंगे। पास में पैसे नहीं होने से जो मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ेगा, उसका अधिक नुक़सान होगा। नोटबंदी का जीडीपी पर तीन तरह से असर पड़ेगा. भारत का काला धन अब विदेश चला जाएगा, क्योंकि लोगों के मन में डर बन गया है. लोग डॉलर खरीदने लगे हैं, इसका सबूत यह है कि डॉलर के मुक़ाबले रुपया लगातार टूट रहा है. इससे जीडीपी कम हो जाएगी।
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