पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने फिर किया एक बार मोदी सरकार पर प्रहार
नोट बंदी का फैसला उन ईमानदार भारतीयों के लिए गंभीर आघात साबित होगा जो रोजाना नकदी कमाकर अपना जीवनयापन कर रहे थे। बेइमान काले धन वालों का इस फैसले से कुछ भी बिगडऩे वाला नहीं है। यह कहना है प्रसिद्ध अर्थशास्त्री, रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का।उन्होंने कहा कि रुपया-पैसा आदमी एक ऐसा साधन है जिससे आदमी का आत्मविश्वास कायम हीं नहीं रहता है बल्कि बढ़ता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने एक फैसले से नौ नवंबर की शुरुआत से देश की 85 प्रतिशत मुद्रा के रूप में प्रचलित 500 व 1000 के नोटों को बंद कर दिया। इससे करोड़ों भारतीयों का विश्वास टूट गया। यह निर्णय गलत निर्णयों में से एक है। प्रधानमंत्री ने अपने इस फैसले से करोड़ों भारतीयों के विश्वास को तोड करके रख दिया। लोग भारत सरकार को इस बात के लिए कोसने लगे कि उन्हें उनकी मुद्रा से वंचित कर दिया।
प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा था कि देश के विकास के इतिहास में ऐसा समय आ गया है जब हमें कुछ सख्त और निर्णायक कदम उठाने की जरूरत महसूस हो रही है। प्रधानमंत्री ने अपने इस फैसले के संदर्भ में दो प्रमुख कारण भी गिनाए, इनमें से एक सीमा पार से दुश्मनों द्वारा भेजी जा रही नकली मुद्रा को रोकना है और दूसरा कारण बताया कि भ्रष्टाचार और कालेधन से देश को मुक्त कराना है। श्री सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री के दोनों कारण बहुत सम्माननीय हैं और वह मानने योग्य भी हैं। इसका सभी ने समर्थन किया और हम भी समर्थन करते हैं कि नकली मुद्रा और कालाधन से भारत में आतंकवाद और समाज के विघटन के रूप में खतरा बनकर सामने आ रहे थे। उन्होंने कहा कि इन दोंनों के लिए उठाया गया कोई भी कदम सराहनीय होता। लेकिन प्रधानमंत्री ने जिस तरीके से यह निर्णय देश को सुनाया, उससे यह संकेत गया कि 500 और 1000 के सारे नोट कालाधन हैं और काला धन ही सारी करेंसी है। जो सत्यता से काफी परे था, इस पर हमें विचार करना चाहिए। देश में 90 प्रतिशत से अधिक कामगार अपना वेतन नकदी के रूप में पाते हैं। इनमें करोड़ों कृषि कामगार, निर्माण से जुड़े कामगार भी हैं। उन्होंने कहा कि 2001 से देश के ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक शाखाओं की संख्या को दो गुना कर दिया है लेकिन गांव और कस्बों में रहने वाले साठ करोड़ लोग फिर भी बैँकों से से नहीं जुड़ पाए हैं। नगदी ही इन लोगों के जीवन का आधार है। श्री सिंह का कहना है कि ये लोग अपनी रोजर्मा की जरूरतें नगदी से ही पूरी करते हैं। ये मुद्रा अधिकांश 500 और 1000 के नोट हुआ करते थे। लोग इन्हीं नोटों से बचत भी करते थे। कालेधन को निकालने और नकली मुद्रा को रोकने के लिए किए गए इस उपाय ने करोड़ों गरीब भारतीयों के जीवन को दुखद बना दिया। लोग पैसे-पैसे के लिए तरसने लगे। किसी भी संप्रभु राष्ट्र की लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार का यह मूलभूत कर्तव्य होता है कि वह अपने नागरिको के मूल अधिकारों की पूर्ण रूप से रक्षा करे। हाल के प्रधानमंत्री के इस फैसले ने इस कर्तव्य के विपरीत कार्य किया है।
भारत में कालो धन का प्रचलन वास्तव में गंभीर चिंता का विषय है। यह मुद्रा आय के अज्ञात स्रोतों से वर्षों से कमाए गए धन से आता है। ये लोग गरीबों की तरह नगदी अपने पास नहीं रखते बल्कि अपने पैसे को जमीन, सोना और विदेशी मुद्रा खरीदने और विदेशों में जमा करने जैसे काम में लगाते हैं। पहले भी सरकारों ने काले धन को निकालने के लिए आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय आदि के माध्यम से छापेमारी की और वालिंटर्स स्कीमें चलाकर लोगों को अपने काले धन को स्वैच्छिक रूप से घोषित करने के लिए प्रेरित किया है। छापेमारी की कार्यवाही सिर्फ कुछ ही संदिग्ध लोगों पर की जा सकती है सभी नागरिकों पर नहीं। पिछली सरकारों की कार्रवाई के प्रमाण हैं कि बड़े पैमाने पर काले धन रखने वाले अपने पर नगद मुद्रा नहीं रखते हैं। सारी मुद्रा काला धन नहीं हो सकती बल्कि छोटा सा हिस्सा ही काला धन हो सकता है। इसीलिए कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री के इस फैसले से रोजाना नगदी कमाने वाले ईमानदार लोगों पर भारी पड़ेगा।उन्होंने कहा कि सरकार ने दो हजार के रुपये को चलाकर काला धन जमा करने वालों को और सुविधा दे दी है। ये नोट बड़े पैमाने पर काले धन वाले जमा कर लेंगे। इससे देश की अर्थव्यवस्था को और अधिक खतरा हो सकता है। उन्होंने रातोंरात लिए गए इस फैसले पर उंगली उठाते हुए कहा कि यह देखते हुए काफी दुख हो रहा है कि आम आदमी अपनी रोजमर्रा की जरूरत के लिए बैंकों की लम्बीन्-लम्बी लाइनों में ऐसे लग रहा है जैसे युद्ध के समय राशन की लाइन में लगा था। मैंने इस दिन की कल्पना भी नहीं की थी कि हमारे देशवासी इस तरह से लम्बी और अंतहीन लाइन लगकर परेशान होंगे। प्रधानमंत्री के एक फैसले ने यह दुखद दिन दिखा दिया।
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