ताकि भारतीय गर्व से कह सकें कि आ गए अब अच्छे दिन
सरकार कैशलेस इकोनॉमी के लिए अभियान छेड़े हुए है। इसके लिए विदेशी कंपनियों की बाढ़ सी आ गई है । इस बीच कुछ भारतीय कंपनियां भी इस होड़ में मैदान में हैं लेकिन भारत की जनता देखते हुए काफी नहीं हैं। आधार कार्ड के जनक नंदन नीलेकणि ने भी सरकार को यह सुझाव दिया है कि भारत की टॉप टेक्नोलॉजी कंपनियों को यदि सरकार विश्वास में ले तो भारतीयों के कैशलेस अभियान बहुत तेजी से सफल हो जाएगा। उनका इशारा चंद विदेशी कंपनियों और कम साख वाली भारतीय कंपनियों की ओर था। भारत की कंपनी भारतीयों की मनोदशा को अच्छी तरह से समझती है उनका उद्देश्य व्यापार के साथ भारतीयों के साथ लगाव भी होता है जबकि विदेशी कंपनी का मतलब सिर्फ अपने कारोबार से होता है और अपने फायदे के लिए किसी भी हद तक जा सकतीं हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण वे पांच निजी बैंकें हैं जिन्होंने जमकर कालेधन को सफेद धन बनाकर सरकार के अभियान को झटका दिया है। हालांकि वे इस बात से अनजान थे कि सरकार को आसानी से हर तरह की भांति ठगा जा सकता है। सरकार ने आठ नवंबर को ही नोट बंदी का निर्णय सुनाने से पहले सबसे पहले बैंकों की निगरानी का इंतजाम कर लिया था। कोई भी बैँक कर्मी गलत काम करके बच नहीं पाएगा। प्रधानमंत्री ने अपनी एक रैली में कहा कि सामने का दरवाजा बंद हो जाने के बाद बैंकर्स ने पिछले दरवाजे से अपनी मनमानी करने की कोशिश की है शायद उसे पता नहीं है कि मोदी ने पिछले दरवाजे में भी कैमरे लगवा रखे हैं। मोदीजी की यह बात तो सही है लेकिन अकेले सरकार पूरे देश को संभालने में सक्षम है फिर भी उसे आवश्यक तंत्र चाहिए। आवश्यक तंत्र को पहचाना जाए और पुरानी साख के आधार पर काम आने वाली भारतीय कंपनियों को मौका दिया जाए। देशवासियों को तरक्की मिल सके ताकि लोग ये गर्व से कह सकें कि आ गये अब अच्छे दिन।
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