मनमोहन सिंह पर या नरेन्द्र मोदी पर
नोट बदली से देश भले ही वर्तमान समय में कई परेशानियों से जूझ रहा है। यह ठीक है कि फिलहाल नगदी से कमाई करने वाला आम आदमी परेशान है। यह कहा जा रहा है लेकिन यह सही नहीं है। रोजमर्रा की कमाई करके जीवनयापन करने वाला मजदूर अधिक से अधिक दस हजार रुपये कमा रहा है। उसे 30 दिसम्बर तक बैंक में पुराना पांच सौ का नोट जमा करने में कोई परेशानी नहीं हो रही है। नोट बदली के बाद से बैंकों में लाइनें भी कम हो गईं है। इसलिए यह तो नहीं माना जा सकता है कि काम करने वाले मजदूरों को कोई परेशानी हो रही है। नवंबर माह से यह प्रचलन में आ गया है कि जो मजदूर या प्राइवेट दुकानों या संस्थानों में काम करने वाले छोटे कर्मचारियों को वेतन पुराने नोटों में मिल जाता है जिसे वे अपने खातों में जमा करके नए नोटों में निकाल लेते हैं। वैसे भी बड़े संस्थान अपने कर्मचारियों को वेतन पहले से ही बैंक खातों में देते थे और उनके पास एटीएम रहते थे। उनके लिए सिर्फ इतना बदलाव आया है कि एटीएम नहंीं चल रहे हैं और बैंकों में लाइनें लग रहीं हैं। इसके अलावा कोई परेशानी नहीं आ रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नोट बंदी के फैसले पर एक बार फिर लोगों को भावुक कर दिया कि भारत देश स्वार्थियों का देश नहीं हैं यहां गरीब माता-पिता के पास पैसे नहीं होते हैं वे शाम को सब्जी नहीं बनाते हैँ। पैसे बचाते और सोचते हैं कि ये पैसे उनके बच्चों के पढऩे लिखने में होने वाले खर्च में काम आएंगे। यह बिलकुल सही कहा पीएम ने।अब पूर्व पीएम और अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह बहुत ईमानदार और सज्जन व्यक्ति हैं,ये सभी जानते हैं लेकिन एक सीमा से अधिक मौन रहने के कारण ही उन्हें सत्ता से बाहर होना पड़ा। इस बात को स्वयं वे जानते हैं लेकिन आजकल जिस तरह से एक मशहूर अर्थशास्त्री और पूर्व प्रधानमंत्री कांग्रेस का प्रवक्ता बनकर अपने बयान दे रहा है उससे ताज्जुब लगता है कि मनमोहन सिंह जी कौन सी भूमिका निभा रहे हैं। यदि उन्हें सच में देश और देशवासियों से प्यार है तो वह आंकड़ों और अपने अर्थशास्त्र के माध्यम से यह समझाते कि इस तरह से नोट बदली के फैसले से आगे आने वाले दिनों में ईमानदारों के समक्ष संकट आएंगे और काले धन वाले मौज करेंगे।
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