new

Sunday, 18 December 2016

कालाधन बनाम काली राजनीति

‘नीति’ और ‘चरित्र’ को त्याग कर राज करने की तिकड़म करने की नीति को आजगल राजनीति कहा जाने लगा है। आजकल जब देश में कालेधन को लेकर अभियान चलाया जा रहा है तौ ऐसी स्थिति मेंं ‘काली राजनीति’ पर भी व्यापक चर्चा होनी चाहिए। कहा जा रहा है कि कालेधन का मुख्य स्रोत काली राजनीति ही है। पहले खूब जमकर अपराध करों, बेहिसाब संपत्ति जुटाओ, चाहे जितने केस लदवाओ और बाद में किसी राजनीतिक आका की शरण लेकर अपने कद के अनुसार लोकसभा या विधानसभा का सदस्य बन जाओ। इस सियासत की गंगा में डुबकी लगाकर पावन बन जाओ। वांछित से मााननीय और सम्मानीय बन जाओ। इसके बदलें में थोड़ा बहुत पैसा देना पड़े तो कोई बात नहीं। यही फार्मूला अपना कर अनेक अपराधी राजनीतिज्ञ बन चुके हैं और बन रहे हैं और बनेंगे। हालांंकि इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कानून का सख्ती से पालन करने का रुख दिखाया और इस पर काफी शोर-शराबा काफी मचा था। पर अब जब पांच राज्यों के चुनाव की तैयारियां चरम पर हैं तो फिर से ये काली राजनीति का जलवा देखने में आ रहा है।  वोट की राजनीति करने वाले दल इस काली राजनीति के इतने अधिक मुरीद है कि कुछ पूछो मत। इस काली राजनीति के दो फायदे राजनीतिक दलों को मिलते हैं। पहला तो चंदा के रूप में बेहिसाब पैसा व अन्य सुविधाएं मिलतीं हंैं। दूसरा फायदा उस सीट पर पार्टी की जीत सुनिश्चित रहती है। क्योंकि काली राजनीति के दंगल में उतरा नया खिलाड़ी हर तरह के खेल में माहिर होता है। पहला वह तो अपने जाति बिरादरी और पार्टी के वोट बैंक को कैश कराता है। उसके बाद अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए इस खिलाड़ी की उस वोट बैंक पर नजर रहती है जो आसानी से उसके पाले में आ सकता है। ऐसा वोट बैँक वो सर्वहारा वर्ग का होता है जो थोड़े से लालच में आकर उसके पक्ष में अपना समर्थन दे बैठता है। यह वर्ग कहने को बहुत चालाक होता है लेकिन यह तत्काल क्षणिक फायदे को देखकर अपने मत का सौदा कर देता है। इसी का लाभ उठाकर कालीराजनीति करने को आया नया खिलाड़ी जल्दी ही इस खेल का बादशाह बन जाता है। चुनाव जीतने के बाद फिर वह अपने दोनों हाथों से थैली भरना शुरू करता है। उसका एक ही सिद्धान्त होता है ‘अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता’। लोकतंत्र के लिए काली राजनीति एक अभिशाप है। इस अभिशाप को दूर करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सत्ता संभालते ही अपना सख्त रुख दिखाया था लेेकिन लगता है कि वह अब फिर से भूल गए हैं और इन चुनावों में काली राजनीति करने वाले खिलाडिय़ों की भरमार होने वाली है। सत्ता पाने के लिए राजनीतिज्ञ दल इन काले राजनीतिज्ञों को अपना मोहरा बनाकर अपना उल्लू सीधा करने में लग गए हैं।इसलिए इस विषय पर मौजूदा समय में एक वृहद चर्चा की आवश्यकता है। 

No comments:

Post a Comment