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Sunday, 18 December 2016

लोकतंत्र के लिए खतरा है दागी राजनीति

निजी स्वार्थ के लिए नैतिकता का सौदा कर देते हैं राजनीतिक दल
देश के पांच प्रमुख राज्योंं में विधानसभा के चुनाव जल्द ही होने जा रहे हैं। यह चुनाव काले धन पर प्रहार करने वाले नोटबंदी के निर्णय और कैशलेस अभियान पर जनादेश माने जा रहे हैं। इन्हें मिनी आम चुनाव भी कहा जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सत्ता संभालने के तीन वर्ष बाद इतने बड़े पैमाने पर चुनाव होने जा रहे हैं। मौजूदा समय में देश में काले धन पर प्रहार और कैशलेस इंडिया अभियान पर चर्चा जोरों पर चल रही है। इसके पक्ष और विप्ख में दोनों ही तरह के दल अपनी-अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं। इसके अलावा कुछ ऐसे भी दल हैं कि इस विषय पर अपनी राय देने का फर्ज निभाने के साथ ही अपनी-अपनी रणनीति अपनाने में जुट गए हैं। ये दल अपने पुराने हथकंडों को अपनाते हुए ऐसे लोगों को चुनाव मैदान में उतारने से परहेज नहीं कर रहे हैं जो डॉन रह चुके हैं। इनके नाम से लोग थर्राते हैं। दहशत की राजनीति करने वाले दल अपने निजी फायदे के लिए नैतिकता का सौदा कर रहे हँै।
आइए आंकड़ों में देखते हैं कि देश में दागी राजनीति का स्थिति क्या है? मोटे-मोटे अनुमान के तौर पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार लोकतंत्र के पावन मंदिर संसद के लोकसभा में कुल संख्या का 36 प्रतिशत हिस्सा यानी 186 माननीय ऐसे हैं जिनके खिलाफ संगीन अपराध के मुकदमें दर्ज हैं। ऐसे माननीयों की उपस्थिति से सभी प्रमुख दल अछूते नहीं हैं। सत्तारूढ़ गठबंधन के प्रमुख राजनीतिक दल ने चूंकि सबसे अधिक सींटें जीतीं हैं तो स्वाभाविक है कि उसमें ऐसे माननीयों की संख्या सबसे अधिक होगी। फिलहाल एक अनुमान के अनुसार भाजपा में 98, कांग्रेस में 08, शिवसेना में 15, टीआरएस में 05, टीडीपी में 06, तृणमूल कांग्रेस में 07, बीजेडी में 03 और एआईडीएमके में 06 ऐसे ही माननीय उपस्थित हैं। 

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