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Wednesday, 21 December 2016

क्यों मिला मोदी को नोटबंदी पर समर्थन

एक दशक तक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा यह फैसला

बीते कई दशकों के गठबंधन उथल-पुथल वाले दौर के बाद नरेंद्र मोदी के नाम पर भारतीय जनता पार्टी को जनता ने बड़ी उम्मीद से पूर्ण बहुमत दिया था। प्रधानमंत्री पद का दायित्व संभालने के बाद नरेंद्र मोदी ने कई सारी योजनाएं भी लाईं, तो भ्रष्टाचार-विरोध के स्तर पर काम करते भी प्रतीत हुए! देश के हित और भ्रष्टाचार विरोध के नाम पर नोटबंदी जैसे कदमों से पूरे देश की जनता को लाइनों में खड़ा भी किया, तो लोगबाग भी तमाम परेशानियों के बावजूद नरेंद्र मोदी की मंशा पर शक नहीं कर रहे हैं, क्योंकि कहीं न कहीं उन्हें प्रतीत हो रहा है कि यह व्यक्ति अन्य राजनेताओं के मुकाबले ज्यादा विश्वसनीयता से कार्य करने का प्रयत्न कर रहा है।
हालांकि नोटबंदी से दिन-ब-दिन लोगों के हालात बद से बदतर होते चले गए हैं और एक-एक करके लोगों का धैर्य भी जवाब देता जा रहा है, तो अर्थशास्त्रियों के तमाम तर्क नोटबंदी के विरुद्ध ही जा रहे हैं। बावजूद इसके सरकार तमाम तर्क दे रही है और इस बात पर अड़ी हुई है कि भारतीय अर्थव्यवस्था कैशलेस नहीं तो लेस कैश की ओर जरूर बढ़ेगी, जिससे डिजिटल इकोनॉमी होगी और अंतत: टैक्स देने वालों की संख्या में भारी बढ़ोतरी होगी। जहां तक बात कालेधन की है, तो सरकार बैंकों में जमा की गई ढाई लाख (नए निर्देशों के बाद 2 लाख) से ज्यादा रकम पर निगाह गड़ाए हुए है और जमाकर्ताओं से जवाब-तलब की तैयारी भी हो रही है। उम्मीद है कि उसमें से कुछ हद तक ही सही, काले धन का हिस्सा नजर आएगा। इसके अतिरिक्त नोटबंदी के समर्थन में सरकार का जो तर्क है, वह नकली नोटों के प्रसार पर लगाम और आतंकवाद की फंडिंग पर कुछ हद तक लगाम की भी थी, किंतु जैसे-जैसे मार्केट में नकदी आती जा रही है और यहां वहां छापे में नए नोट पकड़े जा रहे हैं, वैसे इस बात की उम्मीद भी बढ़ गई है कि नए नोट आतंकवादियों और उनके स्लीपर सेल्स के पास भी पहुंच रहे होंगे।
कई जगह से नए नकली नोटों की बात भी सामने आई है। हालांकि यह इतने बड़े स्तर पर नहीं है जितना पहले 500-1000 के नकली नोट हुआ करते थे। इसके अतिरिक्त वित्त मंत्री अरुण जेटली ने देशवासियों को राहत देने की बात जरूर की है, तो बैंकों द्वारा कम टैक्स दरें किए जाने की उम्मीद भी है। पर इन सामान्य बातों और कवायदों से अलग हटकर जो बात सामने आ रही है वह यह है कि देश में नौकरियां पैदा नहीं हो रही हैं! यह न केवल नोटबंदी के समय की बात है, बल्कि उससे पहले की जो ढाई साल की मोदी गवर्नमेंट की कवायद हुई है, उस सहित पिछली यूपीए सरकार के 10 साल के कार्यकाल की बात भी है। हाल-फिलहाल यह संकट और बड़ा होता नजर आ रहा है क्योंकि नोटबंदी से तात्कालिक रूप से लाखों नौकरियां कम होने का अंदेशा सामने आ रहा है, जिस की भविष्यवाणी कई रेटिंग एजेंसियों ने की है। ऐसा नहीं है कि मामले की गंभीरता सिर्फ आम जनमानस को ही समझ आ रही है, बल्कि भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने खुलकर इस बाबत चिंता जताई है।  उन्होंने ने भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के कौशल विकास प्रशिक्षण केंद्र के वार्षिक समारोह में जोर देते हुए कहा है कि नौकरियों का सृजन देश के लिए महत्वपूर्ण है। अगर देश रोजगार उपलब्ध कराने में असमर्थ रहता है तो इससे अशांति और हताशा पैदा होगी। राष्ट्रपति ने  कहा कि दुनिया की दूसरी सबसे अधिक आबादी वाले भारत को रोजगार की कमी के कारण आने वाले सालों में बड़ी चुनौतियों को सामना करना पड़ेगा, क्योंकि देश की आधी आबादी 25 साल से कम उम्र की है। राष्ट्रपति महोदय की यह चिंता कतई नाजायज नहीं है, क्योंकि हमारे युवा श्रमशक्ति के पास यदि नौकरी होगी तो वे हमारी परिसंपत्ति होंगे, अन्यथा वह हम पर बोझ होंगे, जिससे अंतत: अशांति और हताशा ही पैदा होगी। हालाँकि, कहने को तो यूपीए सरकार सत्ता से हट चुकी है, किन्तु आर्थिक नीतियां देश को लंबे समय तक प्रभावित करती हैं, ठीक वैसे ही जैसे नोटबंदी का वर्तमान निर्णय दशक भर से ज्यादा समय तक देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता रहेगा!


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