केन्द्रीय प्रत्यक्षकर बोर्ड के पूर्व चेयरपर्सन ने कारण बताए
नोटबंदी के बाद बैँक खातों में जमा किए धन की जांच के लिए मोदी सरकार ने जो बातें कहीं हैं, क्या वे वास्तव में पूरी नहीं हो पाएंगी? क्या कालेधन वाले खाते यूं हीं मौज करते रहेंगे? पकड़े जाएंगे तो कत तक? इन कालेधन वालों से बरामद अकूत राशि का देश के गरीबों पर क्या असर होगा? क्या गरीब रातोंरात मालामाल हो जाएगा? देश की बाजारों में रातोंरात सारा जरूरी सामान बहुत सस्ती दरों पर मिल सकेगा? क्या लोग आसानी से अपनी जरूरतों का सामान ख्ररीद सकेंगे? जैसी चर्चाएं आजकल देश भर में चल रहीं हैं। लोगों ने अपने इसी विश्वास से मोदी सरकार को समर्थन दिया है कि वास्तव में अच्छे दिन आएंगे। हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बहुत ही समझबूझ कर काम किया है परन्तु 70 वर्ष पुराने सिस्टम को सुधारने में अभी काफी वक्त लगेगा। यह बात स्वयं प्रधानमंत्री मान चुके हैं। इसलिए हम यह कह सकते हैं कि विमुद्रीकरण के बाद सभी खातों में जमा किए गए पैसों की जांच एक झटके में या एक सीमित समय में हो पाएगी, असंभव है। ऐसा कहना है केन्द्रीय प्रत्यक्षकर बोर्ड के पूर्व चेयरपर्सन सुधीर चन्द्रा का।
द हिन्दू को दिए अपने विचार में श्री चन्द्रा का कहना है कि मौजूदा समय में हमारे पास 45 करोड़ खाते हैं, यदि हम उनमें से एक प्रतिशत खाते भी जांच के लिए लेते हैं तो 45 लाख केस बन जाएंगे। इनकी जांच पड़ताल मैनुआल कर पाना असंभव है। सन् 2011 में काला धन को नियंत्रण करने के लिए बनी उच्च स्तरीय समिति के चेयरपर्सन रहे श्री चंन्द्रा ने बताया कि आयकर विभाग के समक्ष नोटबंदी के बाद सभी बैंक खातों में जमा राशि को चेक करना बड़ी चुनौती बना हुआ है। उन्होंने सिस्टम के बारे में बताया कि आयकर विभाग के चार हजार से पांच हजार आफिसर केवल 100 खातों की जांच कर पाते हैं और उसमें भी काफी लम्बा समय लगता है।
श्री चन्द्रा ने बताया कि आयकर अधिनियम 1961 के तहत एक आयकर अधिकारी के लिए एक केस की पूरी जांच पडताल के लिए दो वर्ष का समय निर्धारित किया गया है। इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि इसे पूर्ण करने में दो वर्ष का समय लग जाएगा। इस काम के लिए विभाग के बहुत ही चुनिंदा अफसरों की जरूरत होती है, तो यह कैसे संभव हो पाएगा। इस अवधि में एक प्रतिशत नहीं बल्कि 0.01 प्रतिशत खाते ही चेक हो पाएं तो बहुत ही अच्छा होगा।
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