विपक्ष से दुखी हैं या अपने करीबियों से?
प्रधानमंत्री ने मुरादाबाद में ‘फक़़ीर’ वाली बात क्यों बोली? उसके पहले तो उन्होंने दावा किया था कि जनता उनके इस क़दम के भारी समर्थन में है। फिर वह झोली उठा कर चल देने की बात से वह क्या कहना चाहते थे? सीधे-सीधे उनका इशारा भले ही विपक्ष की ओर रहा हो लेकिन बात इतनी सी ही नहीं थी क्योंकि वह विपक्ष की हमलें से कभी दुखी नहीं होते बल्कि दोगुनी शक्ति से प्रहार करते हैं। उनके दुखी होने का कारण कोई और है। लगता है उन्हें अब यह सताने लगा हो कि उनका जुआ दांव उलटा न पड़ जाये? मोदी जी ने वाकई बहुत बड़ा दांव खेला है। फिलहाल देश की राजनीति में सारी बातें पीछें रह गईं हैं और नोटबंदी सबसे आगे हो गई है। नोटबंदी से उत्पन्न गफलत को समाप्त करने के लिए प्रधानमंत्री ने अपने ऐप से रायशुमारी भी करवा ली। इसमें वह खरे उतरे हैं। आगामी पांच बड़े राज्यों के चुनाव के परिणाम उनकी सरकार दशा और दिशा तय करेंगे। यह सब तो भविष्य के गर्भ में हैं। हाँ, संघ से जुड़े कई पत्रकार नोटबंदी के खिलाफ ख़ूब लिख रहे हैं और परिवार में रहस्यमयी चुप्पी है। क्या फक़़ीर का तीर उसी लिए था? इसके बाद भाजपा नेताओं पर ही काला धन को लेकर उंगलियां उठ रहीं हैं। जनार्दन रेड्डी, नितिन गडकरी,डॉ. महेश शर्मा, राम कदम सहित कई ऐसे भाजपा के दिग्गज नेता हैं जिनके यहां हुए शादी-विवाह समारोह में बड़े पैमाने पर खर्च हुई रकम को लेकर तरह-तरह के आरोप लग रहे हैं। इन लोगों को लेकर सरकार के सामने नई मुसीब उठ खड़ी हुई है। क्या इसको लेकर मोदी दुखी है। दुखी भले हों, फकीर का तीर भी उन्होंने चलाया है लेकिन अपनी मंजिल के रास्ते भटके नहीं हैं।
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