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Tuesday, 20 December 2016

हिस्ट्री-मिस्ट्री: हम कौन थे, क्या हो गए और क्या होंगे अभी?

आधुनिकता की होड़ में आज हम अपनी जड़ों को भूल गए कि वास्तव में हम क्या थे, क्या हो गए हैं और आगे चल कर क्या होंगे? इस बात का संकेत राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त की इसी तरह की एक कविता देती है कि हम क्या थे?

हम कौन थे,क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभी,
आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी।
संपूर्ण देशों से अधिक, किस देश का उत्कर्ष है,
उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है।
यह पुण्य भूमि प्रसिद्घ है, इसके निवासी आर्य हैं,
विद्या,कला,कौशल्य सबके, जो प्रथम आचार्य हैं।
संतान उनकी आज यद्यपि, हम अधोगति में पड़े,
पर चिन्ह उनकी उच्चता के, आज भी कुछ हैं खड़े।
वे आर्य ही थे जो कभी, अपने लिये जीते न थे,
वे स्वार्थ रत हो मोह की, मदिरा कभी पीते न थे।
फैला यहीं से ज्ञान का, आलोक सब संसार में,
जागी यहीं थी, जग रही जो ज्योति अब संसार में।
मतलब हम कितने उच्च आदर्श वालों, कितने सुसभ्य और कितने सुसंस्कृत थे? हमें विश्व गुरु यूं ही नहीं कहा जाता था। हमारी ऋषियों की गुरु-शिष्य परंपरा बहुत अधिक उच्च संस्कारों वाली थी,जिसकी आज के जमाने में कल्पना तक नहीं की जा सकती। आज हमकितने पतित हो चुके हैं और हमारी गिरने की रफ्तार बहुत अधिक है। यदि यही रफ्तार जारी रही तो हम इतना पतित हो जाएंगे जिसकी कल्पना तक नही की जा सकती। इस विषय पर हम अपनी चर्चा जारी रखेंगे।
विशेष नोट:यह कॉलम अपनी सभ्यता की चर्चा के लिए शुरू कर रहे हैं। आपको हमारे विचार अच्छे या गलत लगें तो अपने सुझाव-शिकायत भेज सकते हैं।

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